सच्चा सच


पहाड़...
सिर्फ उसका है
जो जी रहा है
पहाड़ को
और
टूट रहा है 
पहाड़ की तरह।
उनके लिए तो
पहाड़ 
देवभूमि है
जहां आलौ़ में
छोटी-बडी़ गुफाओं में
विराजते हैं देवता
और 
रखते हैं उनकी
सुख-सुविधाओं का ख्याल
ताकि 
कटती रहे
उनकी जिंदगी
ऐशोआराम से
देहरादून की
आलीशान कोठियों में।
और... हमारे लिए
पहाड़ के मायने 
सिर्फ इतने हैं
कि लिख सकें
कोई ढौल पुर्याता गीत
गाड-गदन्यों सी
छलछलाती कविता
आदर्श बघारती कहानी
हृदय में झौल़ लगाता नाटक।
बुद्धिजीवी होने के नाते
अडा़ते रहें इनको
बुथ्याते रहें उनको
और
जवाबदेही से 
बचने के लिए
नए सिरे से जुट जाएं
फिर किसी
कविता-कहानी की
तलाश में...।


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